सुर्यनगरी श्री सार्इनाथ संस्थान का उदय क्या हुआ की सुर्यनगरी के सार्इभक्तो के सार्इधाम बनाने के अपने को मानो पर लग गए हो, सभी सस्थान सदस्यों ने अपने अपने तरीके से सार्इधाम हेतु भूखण्ड की खोज प्रारम्भ कर दी, एक सस्थान सदस्य ने अपनी खरीदी भूखण्ड में से कुछ भाग सार्इधाम हेतू निशुल्क देने की पेशकश की, पर बाबा को कुछ ओर ही मंजूर था। अत: सस्थान स्थापना के एक माह भीतर - भीतर संस्थान के सस्थापक सदस्यों के आपसी सहयोग से सस्थान ने भुरीबेरी मण्डलनाथ रोड जोधपुर में तकरीबन 18 - 19 बीधा का एक भूखण्ड सार्इधाम हेतु खरीद लिया।
इधर ‘‘सार्इधाम’’ भूखण्ड उपलब्ध होने भर की बात थी अगले 12 दिन प्रश्चात् ‘‘गणेश चतुर्थी ’’ का पावन पर्व आया तथा संस्थान अबूज महुर्त का फायदा उठाते हुए भुमि पूजन संस्थान सार्इ सेवकों द्वारा सम्पन्न हुआ।
सार्इधाम भूमि पूजन से ही सार्इभक्ता का ज्वार कहॉं थमने वाला था, संस्थान सदस्य सार्इधाम में मूलभूत सुविधा बिजली तथा पानी उपलब्ध कराने में जुट गए। गणेश चतुर्थी के दिन ही एक भाभाशाह परिवार ने सार्इधाम परिसर में ट्युब वैल खुदवा डाला। संस्थान सदस्यों के अथक प्रयास से अतिशीध्र बिजली का अस्थायी कनेक्शन भी सार्इधाम को उपलब्ध हो गया। इसी दौरान संस्थान के अन्य सदस्यों के अथक प्रयास से संस्थान का सहकारी समिति के तहत् रजिस्ट्रेशन हुआ तथा शीध्र ही संस्थान का आयकर विभाग में धारा 1A में रजिस्ट्रेशन कराकर आयकर अधिनियम की धारा 80G के तहत् मिलने वाल धन छुट की सुविधा प्राप्त दिन रात सेवकों के अथक प्रयास से बहुत जल्द समय में शिरडी की तर्ज पर सुर्यनगरी के सार्इ धाम में द्वारका मार्इ का निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ , इधर निर्माण कार्य चल रहा था उधर संस्थान सदस्यों का दल र्शिडी रवाना हो गया तथा वहॉं से सार्इ बाबा द्वारा प्रज्जवलित अखण्ड ज्योति व अखण्ड धूनी सुर्यनगरी जोधपुर में सम्मान सहित ले आए तथा विजय दशमी 29 अक्टुम्बर 2007 को जोधपुर के पुर्व महाराजा श्रीमान गजसिंह एवं पुर्व महारानी साहिबा श्रीमति हेमलता राजे के कर कमलो से सार्इधाम में प्रज्जवलित किया गया। जिस वक्त यह अखण्ड ज्योति तथा धूनी का प्रज्जवलन किया गया, उस वक्त द्वारका मार्इ निर्माणधीन थी, बाद में इसका विस्तार व रंग रोगन किया गया।
द्वारका मार्इ के प्रश्चात् एक अन्य दानदाताओं द्वारा गुरू सानिघ्य का निर्माण करवाया गया, नीम पीपल के वृक्ष का सौदर्य लिए गुरूस्थान वहॉ बैठने वाले हर भक्त का अध्यात्म की गहरी अनूभूति करवाता है।
गुरूस्थान के तुरन्त बाद ही सार्इ भक्तों की सुविधा हेतु जल मन्दिर का निर्माण करवाया । यह जल मन्दिर भी एक सार्इ सेवक के सहयोग से निर्मित हुआ।
जल मन्दिर के पास ही दो सार्इ भक्तों के परिवारों के अनुदान से सुर्यनगरी श्री सार्इ भक्तों के परिवारों के सुर्यनगरी श्री सार्इनाथ संस्थान का कार्यालय का निर्माण कार्य सम्पन्न हुआ। जिसमें एक मिटिंग हॉल, एक डोनेशन काउण्टर तथा एक प्रसादी तथा उद्दी वितरण काउण्टर बनाया गया।
संस्थान के लिये सबसबे मुश्किल तथा खर्चीला कार्य था सार्इ धाम के 18 बीधा भूखण्ड पर परिधि दीवार का निर्माण करना, पर जब सार्इ हो साथ फिर डर की क्या बात देखते ही देखते सभी सेवकों तन-मन-धन के सहयोग के चलते 4 माह के भीतर इस परिधि दीवार का निर्माण कार्य भी पूर्ण हुआ।
चला आ रहा है।कारवा होले होले अब यह कारवा कहा रूकने वाला था बाबा की हाजरी से फिर भाभाशाह परिवार आगे आया ओर उसने अपनी ओर से रत्न श्री भोजनशाला निर्माण करवा उसे सार्इ चरणो में समर्पित करने का दृड सकल्प लिया । गुरू पूर्णिमा को इसे सार्इ चरणो में समर्पित किया गया। भोजनशाला के निर्माण कार्य जब चल रहा था तब एक अप्रवासीय भारतीय सार्इ भक्त परिवार ने बाबा की 6’ 3” उची प्रतिमा सस्थान को भेट स्वरूप प्रदान की। फिर देर काहे की थी संस्थान के सभी सदस्यों के भरपुर सहयोग के चलते सर्वधर्म प्रार्थना स्थल निज प्रॉगण का ढाचा रिकार्ड़ दो माह में पूर्ण कर गुरू पूर्णिमा के पावन पर्व पर बाबा की प्रतिमा की स्थापना गाजे बाजे के साथ समारोह पूर्वक गयी ।
सबसे जरूरी व अहम जरूरत जो की न केवल सार्इधाम की है वरन् सम्पूर्ण विश्व की वो है हरियाली। सस्थान सार्इ सेवकों ने श्रमदान करते हुए सैकड़ों छायादार वृक्ष लगाए गये है जिनकी नियमित देखभाल की जा रही है।
सार्इधाम रेलवे स्टेशन से करीब 19 किलोमीटर व आखलिया से 11 किलोमीटर पर है। शहर के करीब प्रत्येक कोणों से आसानी से सार्इधाम पहूॅचा जा सकता है। जोधपुर लिये सभी राज्यों से सीधी ट्रेन है।